ग्रह उच्च अवस्था में या नीचस्थ अवस्था में अधिक शुभ फलदाई किस स्थिति में होते है
ग्रह उच्च अवस्था में या नीचस्थ अवस्था में अधिक शुभ फलदाई किस स्थिति में होते है ,कई पोस्ट देखे जिनमे सभी के अपने अपने तर्क थे कुछ के अनुसार कलयुग में नीचस्थ ग्रह शुभ फल प्रदान करते है कई लोगों अन्य कई तर्क थे।
यदि नीचस्थ ग्रह शुभ फलदायी होते तो ऋषि मुनियों ने उनके फल नगण्य क्यों बताये। और यदि उन्होंने उनके फल अशुभ कहे तो कैसे बड़े विख्यात लोगों की कुंडली में नीचस्थ ग्रह होने पर भी उन्हें सफलता मिली ? उचित प्रश्न है
किन्तु ये स्पष्ट है ऋषि मुनियों ने जो भी सूत्र हमें दिए है वे अकाट्य है। अर्थात जितने भी अन्य मत है उनसे ज्यादा महत्व ऋषि मुनियो के लिखित सूत्रों का है।
कोई भी ग्रह यदि उच्च अवस्था में है तो अवश्य ही उक्त ग्रह के कारकत्वों में वृद्धि होती है।
जैसे की यदि सूर्य उच्च राशि में तो मान प्रतिष्ठा में वृद्धि ,पिता की उत्तम स्थिति स्वाभिमान की रक्षा नीचस्थ अवस्था में तो इसके उलट फल ,चंद्र उच्चस्थ अवस्था में तो स्वस्थ मन ,जीवन में सुख की वृद्धि , शुक्र यदि उच्च अवस्था में होतो विलासिता की वृद्धि ,धन की उत्तम व्यवस्था , शनि हो तो कर्मक्षेत्र के लिए शुभ दायी , मंगल हो तो पुष्ट देह एवं धन एवं बाहुबल , बुध यदि उच्च अवस्था में तो उत्कृष्ट शिक्षा एवं बुद्धि एवं व्यापार वृद्धि , गुरु उच्च तो जीवन में उत्तम सामाजिक स्थिति , भाग्य वृद्धि ,ज्ञान की वृद्धि आदि यदि उक्त ग्रह नीचस्थ अवस्था में हो उक्त कार्यो में अवश्य ही परेशानी आती है।
किन्तु मुख्या बिंदु ये है नीचस्थ ग्रह यदि नीचभंग हो एवं मित्रो का सहयोग मिले तो अतिशुभ फलदायी प्रारम्भिक कुछ रुकावट के बाद , यदि उच्च ग्रह का उच्चभंग हो तो उसका फल शुभ नहीं होगा।
कोई भी नीचस्थ ग्रह अपनी दशा अन्तर्दशा में कैसा फल देगा ये निर्भर करेगा उक्त ग्रह के नक्षत्र स्वामी अनुसार यदि वो शुभ स्थिति में तो उसके फल शुभ फल होंगे। यदी वो अशुभ तो अशुभ फल होगा। ठीक वैसे ही उच्च ग्रह के फल भी दशा अंतर में नक्षत्र स्वामी अनुसार शुभ अशुभ होंगे।
जो भी ग्रह कुंडली में उच्च स्थिति में है तो स्व के कारकत्वों में अवश्य वृद्धि देंगे जैसे मानले किसी का गुरु उच्च अवस्था में स्थित है तो गुरु स्वयं के कारकत्वा ज्ञान , भगवत कृपा आदि में वृद्धि एवं गुरु 2 5 9 11 भावो के कारक ग्रह है। अब इनमे से जो भी भाव स्वामी की स्थिति शुभ होगी उसके उत्कृष्ट फल जातक को प्राप्त होंगे जैसे की गुरु उच्च अवस्था में एवं दुसरे भाव का स्वामी भी स्व राशि में तो द्वितीय भाव से अतिशुभ फल जातक को मिलेंगे। ठीक वैसे ही यदि गुरु नीचस्थ अवस्था में हो तो उक्त करक भाव 2 5 9 11 में से जो भाव स्वामी अशुभ अवस्था में होंगे उक्त भाव के फल नगण्य होंगे जैसे की गुरु नीचस्थ अवस्था में हो एवं द्वितीय भाव अशुभ अवस्था में तो जातक को अपने कुटुंब , धन स्थान से अशुभ फल प्राप्त होंगे। उच्च एवं नीच राशि में स्थित ग्रहो के फल सरल शब्दों में लिखने का प्रयास किया है आशा करता हूँ ये बिंदु सभी आसानी से समझ सकेंगे । धन्यवाद्
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