Author: Dinesh Yadav.
सत्य ही शिव है शिव ही सुंदर है ,क्या आप जानते है वो कोनसे भाव है जो व्यक्ति विशेष को समस्त पापकर्मो से मुक्ति प्रदान करने का मौका देते है , जी सबसे प्रमुख है चतुर्थ स्थान द्वित्य है अष्टम स्थान तृत्य है द्वारदश स्थान , एवं वर्ग कुंडली में चतुर्थांश , चतुर्थ , अष्टम एवं द्वारदश भाव जिन्हे हम मोक्ष त्रिकोण के नाम से भी जानते है , मोक्ष त्रिकोण का सम्बन्ध ब्राह्मण वर्ण से एवं इनका जीवन सबसे कठिन माना गया है .क्यों ? क्योंकि ब्राह्मण वर्ण का सम्भन्ध भगवद भक्ति एवं मोक्ष की प्रप्राप्ति मुख्या ध्येय। ( यहाँ वर्ण पुराणिक काल अनुसार बताये गए है किन्तु वर्तमान काल में आप अपने कर्मो द्वारा किसी भी वर्ण के हो सकते है ) अर्थात भक्ति भावना धर्म दान पुण्य इसी त्रिकोण से सम्भन्ध रखते है। काल पुरुष कुंडली का चतुर्थ भाव स्वामी चंद्र जिसका सम्भन्ध ह्रदय के ऊपरी भाग के साथ साथ आपके मन से है। यही भाव आपके ह्रदय का मुख्या पम्पिंग स्टेशन जो भी भाव आपके मन में वही भाव आपके शरीर में इस पंप द्वारा भेज दीये जाते है। अर्थात लालसाये ,कपट। धूर्तता होगी तो वो भी इसी भाव भावेश एवं करक द्वारा पूरे शरीर में भेज दी जाएगी। यदि ये होंगे तो आप सूंदर कभी नहीं हो सकते अर्थात सूंदर से अभिप्राय स्वच्छ निर्मल मन एवं भावनाओ से है। , अष्टम स्थान राशि वृश्चिक जोकि समस्त प्रकार के विष आदि से सम्भन्ध रखती है। ये राशि भी शरीर को गंदगी से मुक्ति देती है मल ,मूत्र द्वारा समस्त प्रकार के विष से मुक्ति ,तीसरा मुख्या भाव द्वारदश भाव जो की आपकी नींद से सम्भन्ध रखता है। आप जब सोते है आपका शरीर से विषहरण होने के साथ नयी कोशिकाओं का निर्माण होता है। अर्थात कुंडली ये तीन भाव मुख्या है जिनसे शरीर से गन्दगी हर स्तर पर साफ़ यही भाव जितने शुभ पाप मुक्त होंगे जातक उतना पाप कर्मो से मुक्त। ये मेरे स्वयं के विचार कोई त्रुटि हो क्षमा करे। एवं स्व विवेक द्वारा लेख को परखे। दिनेश यादव
